21 जुलाई 2025 को देश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया, जब भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह खबर सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर तेजी से वायरल होने लगी। इस्तीफे का कारण बताया गया — स्वास्थ्य समस्याएं, लेकिन कई लोग मानते हैं कि इसके पीछे सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि राजनीति भी जिम्मेदार है।
धनखड़ जी पिछले कुछ महीनों से शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे। मार्च में उन्हें AIIMS में भर्ती कराया गया था, जब उन्हें छाती में तकलीफ हुई। इसके बाद जून में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान वे मंच पर बेहोश होकर गिर पड़े। गर्मी और थकावट को वजह बताया गया। इसके बाद से ही उनके स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। हाल ही में भी कुछ आयोजनों में वे बेहद अस्वस्थ नजर आए, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें सार्वजनिक जीवन से कुछ समय के लिए दूर रहने की सलाह दी। इन सबके बीच उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया।
लेकिन क्या कारण सिर्फ स्वास्थ्य ही है? यही वह सवाल है जो अब हर राजनीतिक गलियारे में गूंज रहा है। दरअसल, इस्तीफे से ठीक पहले उपराष्ट्रपति और केंद्र सरकार के बीच कुछ मुद्दों को लेकर तनाव की खबरें सामने आ रही थीं। कहा जा रहा है कि उन्होंने हाल ही में एक संवेदनशील न्यायिक मामले में सरकार के खिलाफ रुख अपनाया था, जिससे सत्ता पक्ष उनसे नाराज़ हो गया था। यही नहीं, एक बड़ी बैठक में प्रधानमंत्री और कुछ वरिष्ठ मंत्री जानबूझकर उपस्थित नहीं हुए, जिसे राजनीतिक असहमति का संकेत माना गया।
विपक्ष का भी कहना है कि यह एक ‘राजनीतिक मजबूरी’ का इस्तीफा है, न कि सिर्फ स्वास्थ्य का मामला। उनका दावा है कि उपराष्ट्रपति के निर्णयों से सरकार असहज थी और उन पर दबाव बनाया गया। हालांकि सरकार की ओर से साफ कहा गया है कि वे धनखड़ जी के स्वस्थ होने की कामना करते हैं और यह फैसला पूरी तरह से उनकी निजी स्थिति पर आधारित है।
सच्चाई शायद दोनों के बीच कहीं है। एक तरफ धनखड़ जी की उम्र और स्वास्थ्य वास्तव में चिंताजनक स्थिति में थी। दूसरी तरफ, जिस तरह राजनीतिक घटनाएं उनके इस्तीफे से ठीक पहले हुईं — वो इत्तेफाक नहीं लगतीं। राजनीति में ऐसा अक्सर होता है जब किसी का “स्वास्थ्य” एक सम्मानजनक बहाना बन जाता है, जबकि असली कारण कहीं और छिपा होता है।
अब सवाल ये है कि क्या जगदीप धनखड़ पूरी तरह से राजनीति से दूर हो जाएंगे या किसी नए रूप में फिर सामने आएंगे? उनके अनुभव, विद्वता और स्पष्टवादी स्वभाव को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वे पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन से अलग हो पाएंगे। लेकिन फिलहाल, देश उन्हें अच्छे स्वास्थ्य और सुखद जीवन की शुभकामनाएं दे रहा है।
निष्कर्ष:
धनखड़ जी का इस्तीफा एक साधारण घटना नहीं है। यह भारतीय राजनीति में उस अदृश्य खिंचाव को उजागर करता है जो सत्ता और संस्थाओं के बीच चलता रहता है। स्वास्थ्य तो वजह हो सकती है, पर राजनीति कभी अकेली नहीं चलती।
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